हिंग की खेती कब और कैसे करे :

पहले भारत में हिंग की खेती नहीं की जाती थी अब भारत में भी हिंग की खेती शुरु हो रही है |

हिंग की खेती करने के लिए बलुई मिट्टी और  20 से 30 डिग्री  का तापमान बेहतर माना जाता है ,हिंग को इसके पौधे के जड़ से निकाले  गये रस से बनाया जाता है, हिंग की लम्बाई लगभग  एक से डेढ  मीटर तक होता है हिंग की खेती प्रमुख रूप से ईरान ,अफगानिस्तान , तुर्कमेनिस्तान और बलूचिस्तान में होता है |

सबसे ज्यादा हिंग ईरान और अफगानिस्तान के पहाडियों के बीच सबसे ज्यादा हिंग पाई जाती है ”पहाड़ी इलाको में हिंग का पौधा पाया जाता है

हिंग का वनस्पति नाम फेरुला एसाफ़ोईटीडा है तथा यह एपीएसी कुल का एक बहुवर्षिय पौधा  है  यह पौधा ज्यादातर ईरान व अफगानिस्तान के पहाड़ी इलाको में जंगली रूप में पाया जाता है हिंग को अनेक नामो से जाना जाता है हिंग,हिंगर,कायम,यांग,हेंगु,इंगुवा,हिंगू ,तथा रमाहा आदि नामो से जाना जाता है हिंग के पौधे मध्य और पूर्वी एशिया के भूमध्यसागरीय क्षेत्र में मिलते है |  हिंग का उपयोग मसाले के लिए किया जाता है | हिंग को खाने में महत्त्वपूर्ण माना जाता है तथा कोई भी सब्जी हो या दल  ,जिसमे हिंग का उपयोग नही किया जाता हो ,हिंग में औषधीय गुण भी है तथा आयुर्वेद के  अनेक ग्रंथों में भी इसके औषधीय उपयोग का वर्णन है

हिग का बीज :

हिंग का बीज आकार में अंडाकार ,चपटा एव हल्के भूरे रंग का होता है तथा ये दोनों तरफ से एक पतली और चौड़ी कागजनुमा परत से ढका हुआ होता है हिंग का बीज प्राय: बीज निष्क्रियता में होने के कारण अंकुरित नहीं हो पाता है | बीज को अंकुरित करने के लिए बीज की निष्क्रियता को तोड़ना अति आवश्यक है |

प्रवर्धन व  प्रजनन :

हिंग के पौधों में पुष्पण पांच वर्ष में होता है तथा इसके फूल पीले और संयुक्त पुष्पछत्र में होते है इसमें उभयलिंग फूल पाए जाते है तथा कीटो द्वारा परागण होता है | हिंग के पौधों में पाचवे साल में मई माह के दौरान पुष्पगुच्छ आने शुरु हो जाते है | इसके फूल पीले रंग के तथा उभयलिंगी तथा दोनों नर व मादा फूल एक ही पौधे में पाए जाते है हिंग के पौधों में जून –जुलाई के माह में बीज बननातहत अगस्त –सितंबर माह में बीज पूर्ण रूप से कटाई के लिए तैयार हो जाता है |जिसे हिंग के पौधे से बीज तैयार किया जाता है उस पौधों की जड़ से हिंग रस नहीं निकालना चाहिए |

हिंग की बुवाई कैसे करे :

हिंग की बुवाई अधिकतर बीज के माध्यम से किया जाता है | एक हेक्टेयर भूमि के लिए हिंग का एक किलो ग्राम बीज की आवश्यकता होती है |  परन्तु अगर बीज द्वारा नर्सरी में पौधे तैयार करने के पश्च्यात खेत में पौधे का रोपण किया जाये तो बीज की मात्रा को कम किया जा सकता है इसकी खेती के लिए पहाड़ो के दक्षिण दिशा की ओर ढलानदार खेत जल की निकासी के लिए उपयुक्त होते है | बीज की निष्क्रियता तोड़ने के लिए बीजो को अक्टूबर- नवम्बर माह में बर्फ पड़ने से पहले खेतो में बुवाई की जाती है | नर्सरी में पौधे तैयार करने के लिए बीज की निष्क्रियता तोड़ने हेतु द्रुतशितन (चिलिंग ट्रीटमेंट ) उपचार का उपयोग अति आवश्यक है | हिंग की खेती के लिए पंक्ति से पंक्ति की दुरी 1.0  मीटर से 1.5 मीटर  तथा पौधे से पौधे की दुरी 0.75 मीटर से 1.0 होनी चाहिए तथा बीज उत्पादन के लिए दुरी अधिक रखनी चाहिए|  

हिंग के खेती के लिए जलवायु व मिट्टी कैसे होनी चाहिए :

हिंग के खेती के लिए शुष्क तथा ठंडा वातावरण अनुकूल मन जाता है | यह न्यूनतम तापमान -5 से -10 डिग्री सेल्सियस तथा उच्चतम तापमान 35 से 40 डिग्री सेल्सियस सहन कर सकता है | इस पौधे को पूरी धुप की अवश्यकता होती है तथा पहाड़ी इलाको में जहां सूरज की किरणें बिना रूकावट सीधे जमीन तक पहुचती है ,इसके लिए उपयुक्त है | यह कम PH स्तर को भी सहन कर सकता है इसकी जड़े लम्बी तथा गहरी होने के कारण रेतीली दोमट मिट्टी इसके खेती के लिए उपयुक्त होती है परन्तु खेत में जल भराव की कोई स्थिति उत्पन्न नहीं होनी चाहिये | हिंग की खेती के लिए औसतन वर्षा 100 – 350  मि.मी उपयुक्त मानी जाती है |

हिंग की सिचाई कैसे करे :

हिंग के जड़े लम्बी तथा गहरी होने के कारण इसकी खेती के लिए अधिक सिचाई की आवश्यकता नहीं होती है | हिंग के पौधों को मिट्टी में स्थानांतरित करने के बाद 2-3 दिन के अंतराल में 1 माह तक पानी देने की आवश्यक होती है तथा उसके बाद इस अवधि को बढाया जा सकता है | पौधे स्थापित होने के उपरांत जरुरत होने पर ही सिचाई करे , हिंग में ज्यादा पानी देने से या पानी इकट्ठा होने के कारण हिंग के पौधे नष्ट हो जाते है | खर पतवार निकलने के लिए समय –समय पर निराई तथा गुड़ाई  की आवश्यकता होती है |

हिंग के रस का संग्रहण :

हिंग के पौधे को तैयार होने में लगभग 5 वर्ष लगते है | इसकी जड़ के ऊपर का भाग गाजर की तरह होता है | हिंग की कटाई फूल आने से पहले की जाती है | हिंग के पौधे में चौथे अंकुरण के बाद जड़ में ओलियो गम राल का उत्पादन पूर्ण होता है| हिंग में ओलियो गम राल निश्कर्षण के लिए जड़ में चीरा लगाया जाता है | चीरा लगाने के विभिन्न तरीको में से ‘हरिजान्टल  कटिंग ’ एक पारंपरिक विधि है , जिसका सर्वाधिक उपयोग होता है | हिंग की जड़ में लगभग 8-10 बार चीरा लगाया जाता है जब तक उसमे से ओलियो गम राल  निकलना बंद ना हो  जाये |

हिंग के पौधे से निकलने वाली राल/दूध  से हिंग बनाई जाती है | दूध सूखने के बाद ठोस पर्दाथ बन जाता है | हिंग तीन रूपों में उपलब्ध होती है जैसे : ‘आसू ’, ‘मास ’ और ‘पेस्ट ’ |आसू राल का सबसे शुद्ध रूप है यह गोल या चपता और रंग में भूरा या हल्का पीला होता है | मास हिंग साधारणतया एक व्यवसायीक रूप है , जो की आकर में एक समान होता है | पेस्ट में बाहय द्रव्य पाए जाते है | क्योकि शुद्ध हिंग को इसकी तीखी गंध के कारण इसे पसंद नहीं किया जाता है | इसे स्टार्च और गोद के साथ मिक्स किया जाता है और मिक्स हिंग के रूप में बेचा जाता है | यह पाउडर के रूप में या टैबलेट के रूप में भी उपलब्ध है शुद्ध /कच्चे हिग की  कीमत उसके गुणवक्ता पर निर्भर करती है | 1 किलो  हिंग की कीमत लगभग 5 हजार रूपए से 25 हजार रूपए तक होती है | एक पौधे से करीब 20-25 ग्राम हिंग प्राप्त होते है      

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